“Poster Politics 2.0: सपा के मंच से गायब हुई एक ‘यादव’ तस्वीर

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

इटावा की हवा कुछ बदली-बदली सी है, क्योंकि समाजवादी पार्टी का एक पोस्टर छपते-छपते राजनीतिक पोस्टमार्टम की वजह बन गया। जी हां, महेवा ब्लॉक के PDA सम्मेलन में एक चेहरा पोस्टर से ग़ायब था — और वो कोई और नहीं, अखिलेश यादव के चचेरे भाई अंशुल यादव थे।

Missing Person नहीं, Missing Politician

पीडीए सम्मेलन के विशाल मंच पर सपा के तमाम दिग्गज नेताओं के चेहरे चमक रहे थे। शिवपाल यादव से लेकर सांसद जितेंद्र दोहरे और ब्लॉक प्रमुख तक, सब थे — बस अंशुल यादव की फोटो नहीं थी।

अब भैया, यादव कुनबे में अगर एक यादव गायब हो जाए, तो क्या बखेड़ा नहीं होगा?

“जान को खतरा है…” – बोले सांसद दोहरे!

सांसद जितेंद्र दोहरे ने मीडिया में आकर कहा, “मुझे धमकी मिल रही है, जान का खतरा है!”
उनका कहना है कि कुछ लोग इस मामूली पोस्टर मुद्दे को जानबूझकर बढ़ा रहे हैं। उन्होंने सफाई दी कि उन्हें तो अंशुल यादव का “आशीर्वाद” भी प्राप्त है।

लेकिन पोस्टर में उनकी तस्वीर क्यों नहीं थी?
इस पर सांसद साहब चुप हैं — शायद ग्राफिक डिजाइनर छुट्टी पर था!

‘PDA’ में ‘D’ यानी दलित गायब?

अब जब सांसद दलित हैं और अखिलेश यादव का नारा “PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक)” है, तो सवाल ये उठ रहा है — क्या PDA के ‘D’ का सम्मान सिर्फ नारों तक सीमित है?

सियासी गलियारों में चर्चा गरम है कि कहीं यह मुद्दा जातीय खींचतान का नया रूप तो नहीं?
राजनीति में फोटो से बड़ा कोई मुद्दा नहीं होता — और इटावा में ये बात फिर से साबित हो गई!

Poster Politics or Power Struggle?

इस पूरे प्रकरण को केवल ‘पोस्टर से फोटो गायब’ की तरह मत देखिए। यह लोकल बनाम हाई-कमान, दलित बनाम यादव डोमिनेंस, और अंदरूनी सियासत की गहरी लड़ाई है। समाजवादी पार्टी के भीतर की उथल-पुथल अब खुले मंचों और पोस्टरों में दिखने लगी है।

पोस्टर नहीं, पावर का ट्रेलर है!

जब पार्टी के मंच पर चेहरे तय करने में ही घमासान हो, तो चुनाव में सीटें कैसे तय होंगी?
सपा का ये विवाद साबित करता है कि राजनीति अब विचारधारा नहीं, विज़िबिलिटी का खेल बन चुकी है। अगली बार कोई नेता पोस्टर में न दिखे, तो उसे “माफ करिएगा”, हो सकता है वो “डिज़ाइनर की गलती” हो… या फिर रणनीति की चाल!

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